कांगड़ी धाम (Kangri Dham) को हिमाचल प्रदेश से अलग करना बहुत कठिन है, क्योंकि धाम हिमाचली परंपरा का एक अभिन्न अंग है। धाम (Dham), हिमाचली शैली में तैयार दोपहर के भोजन का स्थानीय नाम है। धाम, रिश्तेदारों और स्थानीय दोस्तों को विवाह, जन्मदिन या किसी अन्य अच्छे अवसरों को मनाने पर दी जाती है। धाम कुछ बेहतरीन हिमाचली व्यंजनों का स्वाद लेने का शानदार मौका प्रदान करते हैं।
कांगड़ी धाम (Kangri Dham) आम तौर से एक शाकाहारी दावत है जिसे विशेष अवसरों पर ब्राह्मण रसोइयों द्वारा पकाया जाता है जिन्हें ‘बोटी’ के नाम से जाना जाता है। हिमाचली धाम (Himachali Dham) में परोसे जाने वाले व्यंजन एक जिले से दूसरे जिले में अलग-अलग होते हैं।
लेकिन हम काँगड़ा जिले की बात कर रहे हैं, तो बता दें की यहाँ राजमा का मद्रा, चने का खट्टा और मीठे चावल बहुत प्रसिद्ध हैं। कांगड़ी धाम की ख़ासियत मसालों के सही मिश्रण में है, और उनके विशेष बर्तन भी जिनमे खाना बनाया जाता है। धाम दोपहर के खाने को बोलते हैं। भोजन लगभग दोपहर 12 बजे से शुरू हो जाता है और शाम 4 बजे तक जारी रहता है।
कांगड़ी धाम में बनने वाले व्यंजनों / पकवानों के नाम | Dishes Made in Kangri Dham
- मुकंद बड़ी,
- मटर पनीर,
- राजमाह का मदरा,
- चने की दाल,
- कढ़ी,
- छुहारे का रायता,
- माह की दाल,
- खट्ठा (चने / बूंदी),
- मीठे चावाल
कांगड़ी धाम में खाना पकाने का नुस्खा | Kangri Dham Recipe

हिमाचली भोजन आमतौर पर सरसों के तेल में पकाया जाता है, और ज्यादातर एक धाम में परोसे जाने वाले व्यंजन, दही के साथ तैयार किए जाते हैं।
खाना बनाना, दावत से एक रात पहले तांबे के बर्तनों में शुरू हो जाता है, जिसमे विशेष प्रकार के मसालों का इस्तेमाल किया जाता है जो भोजन की सुगंध और स्वाद के पीछे का रहस्य है।
इसमें प्याज, टमाटर और लहसुन का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके बजाय ग्रेवी बनाने के लिए दही का उपयोग किया जाता है।
दही हमारे भोजन को पचाने में बहुत मदद करता है इसी लिए ये सबसे पसंदीदा घटक (ingredient) है।
खाना खिलाने की सेवा पर | Food Serving


कांगड़ी धाम के बारे में एक और प्रसिद्ध बात है इसे व्यवस्थित करने का तरीका है – एक पारंपरिक धाम में खाना एक पंक्ति में जमीन पर बैठ कर हाथ से बने पत्तल (Plate) में खाया जाता है। भोजन को आमतौर पर बोटियों द्वारा परोसा जाता है। भोजन हर एक को समान रूप से परोसा जाता है और सब का भोजन समाप्त हो जाने पर ही सब एक साथ उठते हैं।
कांगड़ी धाम (Kangri Dham) का भोजन

हमारे कांगड़ी धाम (Kangri Dham) के मुख्य पकवान है काले माह (उड़द) की दाल और मदरा – जो की या तो सफ़ेद चने का, राजमाह का या सेपु बड़ी का बनाया जाता है।
सबसे पहले सादे चावल और हरी मिर्च दी जाती है। इसके बाद बारी – बारी से राजमाह, मटर पनीर, पिली चने की दाल, कढ़ी, खजूर की कढ़ी, माह (उड़द) की दाल आती है। सब दालों के बाद काले चने दिए जाते हैं, जो स्वाद में खट्टे लेकिन स्वादिष्ट और मजेदार होते हैं।

सबसे दिलचस्प व्यंजन है सेपू वड़ी, जहां सफेद दाल से बनी छोटी पकौड़ी को पानी में उबाला जाता है, सरसों के तेल में डीप फ्राई किया जाता है और पालक की ग्रेवी में पकाया जाता है।
मेरे लिए तो स्टार डिश खजूर की कढ़ी है, जिसे सूखे खजूर से बनाया जाता है। खजूर की कढ़ी का स्वाद भुने हुए अखरोट द्वारा बढ़ाया जाता है।

और सबके अंत में “मीठे चावल” परोसे जाते हैं – जिनमें प्रचुर मात्रा में देसी घी, केसर और सूखे मेवे डाले जाते हैं। कुछ मामलों में भोजन में लाल या पीले रंग का उपयोग भी किया जाता है।
कांगड़ी धाम में खाना पकाने के बर्तन | Utensils to Cook Kangri Dham


धाम को पकाने के लिए उपयोग किए जाने वाले बर्तनों को चरोटी कहा जाता है। यह संकीर्ण मुँह और घड़े ( गोल ) के आकार के तांबे के बर्तन होते हैं।
बर्तन की आकृति (Design) और मोटाई, धाम के खाने को लंबे समय तक गर्म रहने में मदद करती है। यह एक रसियालु (रसोई) में लकड़ी की आग पर धीमी गति से पकाया जाता है। जिसके लिए आम तौर पर 6x2ft की खाई की जाती है।
धाम का इतिहास | History of Kangri Dham
ऐसा माना जाता है कि लगभग 1,300 साल पहले, हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राजा, जयस्तंभ ने कश्मीरी वज़वान को इतना पसंद किया कि उन्होंने अपने रसोइयों को मांस का उपयोग किए बिना एक समान भोजन तैयार करने का आदेश दिया। इस प्रकार हिमाचली व्यंजनों में एक नया मेनू विकसित किया गया, जिसे अंततः धाम के रूप में जाना जाता है।
साथ ही प्रारंभ दिनों में धाम को केवल मंदिरों में प्रसाद के रूप में परोसा जाता था और इसलिए विशेष ब्राह्मण समुदाय को उन्हें तैयार करने की अनुमति थी। संपूर्ण भोजन सात्विक होता है, जिसका अर्थ है कि इसे तैयार करने के लिए प्याज, अदरक या लहसुन का उपयोग नहीं किया जाता है। हालांकि फिर समय के साथ, हर अवसर पर विवाह, पारिवारिक कार्यक्रम धाम बनाई जाने लगी।
Asli SWAD Ji
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