ज्वाला जी – हिन्दुओं की देवी / ज्वाला देवी (Jwala Ji – Goddess of Hindu’s / Jwala Devi) का मंदिर भारत में हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्तिथ है। भारत में कुल 51 शक्तिपीठ हैं, ज्वाला जी (Jwala Ji) का मंदिर जिनमे से एक है। ऐसा मन जाता है कि ज्वाला जी जी का मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया सबसे पहला मंदिर है। ज्वाला जी का मंदिर काँगड़ा घाटी के शिवालिक श्रेणी में स्तिथ है जिसे “कालीधार” के नाम से जाना जाता है।
ज्वाला जी एक हिन्दू देवी (Hindu Devi) है जिन्हे मुख्यता ज्वाला जी (Jwala Ji), ज्वाला देवी (Jwala Devi) और ज्वाला मुखी (Jwala Mukhi) के नामों से पुकारा जाता है। माँ वैष्णों देवी (Vaishno Devi) जी के मंदिर के बाद ज्वाला देवी दूसरा सबसे प्राचीन मंदिर है। महाभारत और अन्य धार्मिक शास्त्रों में भी ज्वाला देवी के मंदिर का उल्लेख किया गया है।

ज्वाला जी / ज्वाला देवी (Jwala Ji / Jwala Devi) मंदिर में किसी मूर्ति इत्यादि की पूजा नहीं होती बल्कि यहाँ एक ज्वाला / ज्योति (आग की लपट) जो हमेशा जलती रहती है, उसकी ही पूजा की जाती है। माना जाता है कि देवी सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया गया था तब उनकी धधकती हुई जीभ इस स्थान पर पड़ी थी जो अब ज्वाला / ज्योति के रूप में जलती रहती है।
ज्वाला जी मंदिर के समीप में ही बाबा गोरखनाथ जिन का भी मंदिर है जिसका आरंभिक निर्माण राजा भूमि चंद ने करवाया था और बाद में महाराणा रणजीत सिंह और राजा संसार चाँद ने लगभग 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण कराया था। मंदिर में एक प्राकृतिक गुफा है जहाँ नौ ज्वालाएं जाती रहती हैं जिन्हे महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। ज्वाला देवी के मंदिर के प्रांगण में हर साल नवरात्रों के समय मेलों का आयोजन भी किया जाता है।
माँ ज्वाला देवी (Jwala Devi) लखनपालों, ठाकुरों, गुजरालों, बासदेवों और भाटियाओं की कुलदेवी हैं।
ज्वाला जी मंदिर तक कैसे पहुंचे - How to Reach Jwala Ji Temple ?
ज्वाला जी – हिन्दुओं की देवी / ज्वाला देवी (Jwala Ji – Goddess of Hindu’s / Jwala Devi) के मंदिर का इतिहास, विद्या और श्रद्धा न केवल प्रदेश के स्थानीय लोगो को, बल्कि पुरे भारत देश के सभी हिस्सों के यात्रिओं / लोगों को आकर्षित करने के लिए काफी है। ज्वाला जी मंदिर, काँगड़ा से केवल 24 किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ है। ज्वाला जी मंदिर तक पहुँचना बहुत सुविधाजनक है, यहाँ आप सड़क, रेल मार्ग और हवाई यात्रा कर के पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग के द्वारा (By Road) : ज्वाला जी मंदिर तक आप अपनी गाडी या बस की यात्रा कर के बहुत आसानी से पहुँच सकते हैं। दिल्ली, चंडीगढ़, शिमला जैसे नज़दीकी बड़े शहरों से यहाँ के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। आप यहाँ साधारण बस (Ordinary Bus) या वॉल्वो बस (Volvo Bus) की टिकट बुक करवा के यात्रा कर सकते हैं।
- रेल मार्ग द्वारा (By Rail) : मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना (Una Railway Station) पर स्तिथ है जिसकी मंदिर से दुरी केवल 60 किलोमीटर और दूसरा निकटतम रेलवे स्टेशन होशियारपुर (Hoshiyarpur Railway Station) है जो मंदिर से 75 कोलीमेटर की दुरी पर स्तिथ है। यहाँ से आगे आप बस, टैक्सी, कैब और किराए के लिए निजी कार के द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- हवाई यात्रा द्वारा (By Air) : मंदिर से 45 किलोमीटर की दूरी पर गग्गल (Gaggal Airport) नाम की जगह पर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। जहाँ आप दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ से फ्लाइट द्वारा पहुँच सकते हैं। फिर यहाँ से भी आप बस, टैक्सी, कैब और किराए के लिए निजी कार के द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।


मंदिर के खुलने का समय - Temple Opening Hours
ज्वाला जी मंदिर सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 5 बजे से दोपहर 12 बजे और शाम 4 बजे से रात के 8 बजे तक खुला रहता है। आप किसी भी दिन मंदिर जा कर ज्वाला जी के दर्शन क्र सकते हैं।
ज्वाला जी मंदिर का इतिहास - History of Jwala Ji Temple
ज्वाला जी – हिन्दुओं की देवी / ज्वाला देवी (Jwala Ji – Goddess of Hindu’s / Jwala Devi) के मंदिर के इतिहास के बारे में बताएं तो ये माँ वैष्णो देवी के बाद भारत का दूसरा सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे राजा भूमि चंद कटोच ने पांडवों के सहायता से बनाया था। ये वह स्थान है जहाँ देवी सती के बलिदान के बाद उनकी जलती हुई जीभ गिरी थी।
ये भी कहा जाता है की मुगलों के शाशक अकबर ने कई बार माता की ज्योति को बुझाने का प्रयास भी किया जिसके लिए उसने मंदिर के समीप ही एक झील का निर्माण भी कराया था। लेकिन फिर भी राजा माता की ज्योति को बुझाने में सफल नहीं हो पाया। तब उसने माता को श्रद्धांजलि के रूप में सोने का छत्र चढ़ाने का प्रयास किया जिसका उसके मन में अहंकार भी था। तभी माता ने अपने चमत्कार से छत्र को राजा के हाथों से निचे गिरवा दिया। गिरने के साथ ही सोने का वह छत्र किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया। वह छात्र आज भी मंदिर में मौजूद है। तो इस तरह ज्वाला देवी ने राजा की भेंट को अस्वीकार कर दिया।
क्या है देवी सती की कहानी - What is the story of Devi Sati?
ज्वाला माँ की उत्पत्ति, देवी सती के बलिदान के कारण हुई थी। भारत में कुल 51 शक्तिपीठ हैं जिनमे से ज्वाला माँ या ज्वाला देवी भी एक शक्तिपीठ हैं और इन सभी की उत्पत्ति की कहानी एक ही है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इन सभी स्थानों पर देवी के अंग गिरे थे, जिसका कारण भगवान् शिव के ससुर राजा दक्ष के द्वार आयोजित किया हुआ यज्ञ था।
राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया क्यूंकि राजा दक्ष भगवान शिवे को अपने से छोटा समझते थे। यह बात देवी सती को बहुत बुरी लगी तो वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची, वहां पहुँचने पर उनके सामने ही भगवान शिव का बहुत अपमान किया गया जो देवी सती से सेहन नहीं हुआ और वह यज्ञ के हवन कुंड में कूद गई।
फिर जब भगबान शिव को यह बात पता चली तो उन्होंने देवी सती के शरीर को गोद में उठाकर तांडव करना आरम्भ कर दिया। जिस से सारे ब्रह्माण्ड में खलबली मच गयी। तब ब्रह्माण्ड को भगवान शिव जी के क्रोध से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती को 51 हिस्सों में बिभाजित कर दिया। देवी सती के शरीर का जो भाग जहाँ गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। ज्वालाजी में माता सती की धधकती हुई जीभ गिरी थी जो आज तक भी प्रज्वल्लित है।
ज्वाला देवी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है।


मंदिर के आंतरिक भाग की बनाबट - Temple Interior
मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुन्दर और भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बायीं तरफ अकबर नहर है, जिसे अकबर ने मंदिर में प्रज्ज्वलित ज्योतिओं को बुझाने के लिए बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति। ज्वाला के रूप में विराजमान हैं। मंदिर में एक गुफा में 9 ज्योतियाँ प्रज्ज्वलित हैं जिनके नाम हैं – महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी। मंदिर का नर्माण पांडवों के द्वारा किया गया था।
साथ ही ज्वाला जी मंदिर की चोटी पर सोने की परत भी चढ़ी हुई है।
ज्वाला जी की आरती की समय सारिणी - Aarti Time Table
ज्वाला जी मंदिर में माँ की आरती के समय का नज़ारा बहुत ही अद्बुध होता है। ज्वाला जी की आरती दिन में 5 बार की जाती है जिनके नाम और समय सारिणी इस प्रकार है –
- मंगल आरती – गर्मियों में 5 बजे से 6 बजे और सर्दियों में 6 बजे से 7 बजे के बीच में
- पंजुपचार पूजन – मंगल आरती के बाद
- भोग आरती – 11 बजे से 12 बजे के बीच में
- शाम की आरती – 7 बजे से 8 बजे के बीच में
- शयन आरती – 9 बजे से 10 बजे के बीच में
ज्वाला देवी का मंदिर भारत में हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में स्तिथ है। भारत में कुल 51 शक्तिपीठ हैं, ज्वाला जी का मंदिर जिनमे से एक है। ऐसा मन जाता है कि ज्वाला जी जी का मंदिर पांडवों द्वारा बनाया गया सबसे पहला मंदिर है। ज्वाला जी का मंदिर काँगड़ा घाटी के शिवालिक श्रेणी में स्तिथ है जिसे “कालीधार” के नाम से जाना जाता है।
ज्वाला माँ की उत्पत्ति, देवी सती के बलिदान के कारण हुई थी। भारत में कुल 51 शक्तिपीठ हैं जिनमे से ज्वाला माँ या ज्वाला देवी भी एक शक्तिपीठ हैं और इन सभी की उत्पत्ति की कहानी एक ही है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इन सभी स्थानों पर देवी के अंग गिरे थे, जिसका कारण भगवान् शिव के ससुर राजा दक्ष के द्वार आयोजित किया हुआ यज्ञ था।
राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया क्यूंकि राजा दक्ष भगवान शिवे को अपने से छोटा समझते थे। यह बात देवी सती को बहुत बुरी लगी तो वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची, वहां पहुँचने पर उनके सामने ही भगवान शिव का बहुत अपमान किया गया जो देवी सती से सेहन नहीं हुआ और वह यज्ञ के हवन कुंड में कूद गई।
फिर जब भगबान शिव को यह बात पता चली तो उन्होंने देवी सती के शरीर को गोद में उठाकर तांडव करना आरम्भ कर दिया। जिस से सारे ब्रह्माण्ड में खलबली मच गयी। तब ब्रह्माण्ड को भगवान शिव जी के क्रोध से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती को 51 हिस्सों में बिभाजित कर दिया। देवी सती के शरीर का जो भाग जहाँ गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। ज्वालाजी में माता सती की धधकती हुई जीभ गिरी थी जो आज तक भी प्रज्वल्लित है।
ज्वाला देवी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है।
माँ ज्वाला देवी (Jwala Devi) लखनपालों, ठाकुरों, गुजरालों, बासदेवों और भाटियाओं की कुलदेवी हैं।
मुगलों के शाशक अकबर ने कई बार माता की ज्योति को बुझाने का प्रयास किया जिसके लिए उसने मंदिर के समीप ही एक झील का निर्माण भी कराया था। लेकिन फिर भी राजा माता की ज्योति को बुझाने में सफल नहीं हो पाया। तब उसने माता को श्रद्धांजलि के रूप में सोने का छत्र चढ़ाने का प्रयास किया जिसका उसके मन में अहंकार भी था। तभी माता ने अपने चमत्कार से छत्र को राजा के हाथों से निचे गिरवा दिया। गिरने के साथ ही सोने का वह छत्र किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया। वह छात्र आज भी मंदिर में मौजूद है। तो इस तरह ज्वाला देवी ने राजा की भेंट को अस्वीकार कर दिया।
ज्वाला माँ की उत्पत्ति, देवी सती के बलिदान के कारण हुई थी। भारत में कुल 51 शक्तिपीठ हैं जिनमे से ज्वाला माँ या ज्वाला देवी भी एक शक्तिपीठ हैं और इन सभी की उत्पत्ति की कहानी एक ही है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इन सभी स्थानों पर देवी के अंग गिरे थे, जिसका कारण भगवान् शिव के ससुर राजा दक्ष के द्वार आयोजित किया हुआ यज्ञ था।
राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे भगवान शिव और माता सती को आमंत्रित नहीं किया क्यूंकि राजा दक्ष भगवान शिवे को अपने से छोटा समझते थे। यह बात देवी सती को बहुत बुरी लगी तो वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंची, वहां पहुँचने पर उनके सामने ही भगवान शिव का बहुत अपमान किया गया जो देवी सती से सेहन नहीं हुआ और वह यज्ञ के हवन कुंड में कूद गई।
फिर जब भगबान शिव को यह बात पता चली तो उन्होंने देवी सती के शरीर को गोद में उठाकर तांडव करना आरम्भ कर दिया। जिस से सारे ब्रह्माण्ड में खलबली मच गयी। तब ब्रह्माण्ड को भगवान शिव जी के क्रोध से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती को 51 हिस्सों में बिभाजित कर दिया। देवी सती के शरीर का जो भाग जहाँ गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। ज्वालाजी में माता सती की धधकती हुई जीभ गिरी थी जो आज तक भी प्रज्वल्लित है।
ज्वाला देवी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है।
मुगलों के शाशक अकबर ने कई बार माता की ज्योति को बुझाने का प्रयास भी किया जिसके लिए उसने मंदिर के समीप ही एक झील का निर्माण भी कराया था। लेकिन फिर भी राजा माता की ज्योति को बुझाने में सफल नहीं हो पाया। तब उसने माता को श्रद्धांजलि के रूप में सोने का छत्र चढ़ाने का प्रयास किया जिसका उसके मन में अहंकार भी था। तभी माता ने अपने चमत्कार से छत्र को राजा के हाथों से निचे गिरवा दिया। गिरने के साथ ही सोने का वह छत्र किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया। वह छात्र आज भी वहीँ रखा हुआ है। तो इस तरह ज्वाला देवी ने राजा की भेंट को अस्वीकार कर दिया।
मुगलों के शाशक अकबर ने कई बार माता की ज्योति को बुझाने का प्रयास किया जिसके लिए उसने मंदिर के समीप ही एक झील का निर्माण भी कराया था। लेकिन फिर भी राजा माता की ज्योति को बुझाने में सफल नहीं हो पाया। तब उसने माता को श्रद्धांजलि के रूप में सोने का छत्र चढ़ाने का प्रयास किया जिसका उसके मन में अहंकार भी था। तभी माता ने अपने चमत्कार से छत्र को राजा के हाथों से निचे गिरवा दिया। गिरने के साथ ही सोने का वह छत्र किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया। वह छात्र आज भी वहीँ रखा हुआ है। तो इस तरह ज्वाला देवी ने राजा की भेंट को अस्वीकार कर दिया।
ज्वाला देवी मंदिर तक पहुँचना बहुत सुविधाजनक है, यहाँ आप सड़क, रेल मार्ग और हवाई यात्रा कर के पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग के द्वारा (By Road) : ज्वाला जी मंदिर तक आप अपनी गाडी या बस की यात्रा कर के बहुत आसानी से पहुँच सकते हैं। दिल्ली, चंडीगढ़, शिमला जैसे नज़दीकी बड़े शहरों से यहाँ के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। आप यहाँ साधारण बस (Ordinary Bus) या वॉल्वो बस (Volvo Bus) की टिकट बुक करवा के यात्रा कर सकते हैं।
- रेल मार्ग द्वारा (By Rail) : मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना (Una Railway Station) पर स्तिथ है जिसकी मंदिर से दुरी केवल 60 किलोमीटर और दूसरा निकटतम रेलवे स्टेशन होशियारपुर (Hoshiyarpur Railway Station) है जो मंदिर से 75 कोलीमेटर की दुरी पर स्तिथ है। यहाँ से आगे आप बस, टैक्सी, कैब और किराए के लिए निजी कार के द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
- हवाई यात्रा द्वारा (By Air) : मंदिर से 45 किलोमीटर की दूरी पर गग्गल (Gaggal Airport) नाम की जगह पर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। जहाँ आप दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ से फ्लाइट द्वारा पहुँच सकते हैं। फिर यहाँ से भी आप बस, टैक्सी, कैब और किराए के लिए निजी कार के द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
दिल्ली से ज्वाला देवी की दूरी लगभग 427 किलोमीटर की जो लगभग 8 : 30 घंटों में पूरी की जा सकती है।
ज्वाला जी मंदिर के इतिहास के बारे में बताएं तो ये माँ वैष्णो देवी के बाद भारत का दूसरा सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे राजा भूमि चंद कटोच ने पांडवों के सहायता से बनाया था। ये वह स्थान है जहाँ देवी सती के बलिदान के बाद उनकी जलती हुई जीभ गिरी थी।
ये भी कहा जाता है की मुगलों के शाशक अकबर ने कई बार माता की ज्योति को बुझाने का प्रयास भी किया जिसके लिए उसने मंदिर के समीप ही एक झील का निर्माण भी कराया था। लेकिन फिर भी राजा माता की ज्योति को बुझाने में सफल नहीं हो पाया। तब उसने माता को श्रद्धांजलि के रूप में सोने का छत्र चढ़ाने का प्रयास किया जिसका उसके मन में अहंकार भी था। तभी माता ने अपने चमत्कार से छत्र को राजा के हाथों से निचे गिरवा दिया। गिरने के साथ ही सोने का वह छत्र किसी अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया। वह छात्र आज भी मंदिर में मौजूद है। तो इस तरह ज्वाला देवी ने राजा की भेंट को अस्वीकार कर दिया।
मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन ऊना (Una Railway Station) पर स्तिथ है जिसकी मंदिर से दुरी केवल 60 किलोमीटर और दूसरा निकटतम रेलवे स्टेशन होशियारपुर (Hoshiyarpur Railway Station) है जो मंदिर से 75 कोलीमेटर की दुरी पर स्तिथ है। यहाँ से आगे आप बस, टैक्सी, कैब और किराए के लिए निजी कार के द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।