अगर आप छुट्टियों में हिमाचल प्रदेश की हसीन वादियों का मज़ा लेना चाहते हैं तो कालका से के बीच में चलने वाली कालका शिमला टॉयट्रेन आपको वो सभी नज़ारे दिखने को तैयार है शायद जिनकी आप कभी कल्पना करते होंगे।
कालका शिमला टॉयट्रेन के सफर में आते हैं – हरे-भरे पेड़-पौधों से भरी हुई घाटियां, पहाड़ों को चीरती हुई सुरंगें, झरनो और ऊँचे देवदार के पेड़ों से भरे जंगल, प्रकृति की अपार सुंदरता को दर्शाता है।
कालका शिमला टॉयट्रेन का ट्रैक भारत में चल रही बाकि ट्रैन के मुकाबले छोटा / पतला है जिसे मीटर गेज ट्रैक कहा जाता है। कालका शिमला टॉयट्रेन को अंग्रेजी सरकार द्वारा 1903 में शुरू किया गया था।
रेल मोटर कार टॉयट्रेन - एक मिनी बस के जैसी होती है, जिसमे सिर्फ एक ही कोच होता है। रेल मोटर कार टॉयट्रेन को एक छोटे से इंजन से ड्राइव किया जाता है।
शिवालिक डीलक्स एक्सप्रेस एक साथ 120 यात्रिओं के बैठने की क्षमता वाली एक लक्ज़री ट्रैन है, कोच के अंदर लकड़ी का बहुत सुन्दर काम, फ्लोर पर कालीन बिछाई गयी है और मनोरम दृश्यों को देखने के लिए बड़ी-बड़ी कांच की खिड़कियां हैं।
हिमालयन क़्वीन टॉयट्रेन की स्पीड 18 किलोमीटर/घंटे की रहती है। इस ट्रैन में खाने पिने की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है लेकिन यह ट्रैन रास्ते में 9 स्टेशनों पर रुकती है जहाँ आप को खाने पिने के बहुत से विकल्प पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।
कालका शिमला टॉयट्रेन को बनाने का मुख्य कारण ये था की ब्रिटिश सरकार ने शिमला को आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश साम्राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया था।
शिमला आसानी से पहुँचने के लिए अंग्रेजों ने नवंबर 1903 में कालका शिमला नैरो-गेज ट्रैक ट्रेन को शुरू किया। जिसमे लॉर्ड कर्जन ने पहली ट्रेन की सवारी का आनंद लिया और तब से ट्रेन हर रोज चल रही है।
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